Jitna bhi nikalna chaha kaanton se,
Hum utna jyada ulajhte rahe...
Kismat ka khel bhi ajeeb hai,
Manzil ke paas hokar bhi bhatakte rahe!
जितना भी निकलना चाहा काँटों से,
हम उतना ज्यादा उलझते रहे,
किस्मत का खेल भी अजीब है
मंज़िल के पास होकर भी भटकते रहे।
जितना भी निकलना चाहा काँटों से,
हम उतना ज्यादा उलझते रहे,
किस्मत का खेल भी अजीब है
मंज़िल के पास होकर भी भटकते रहे।
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